आंधी आई, आंधी आई, कविता

आंधी आई, आंधी आई, बच्चों के लिए कविता

पके आम का सीजन आया, सब बच्चों का मन हर्षाया।

आंधी आई, तूफा आया, बच्चों ने तब दौड़ लगाया।

झट से पहुँचे बगिया में, लोवर, बंडी, जांघिया में।

सब बच्चे चिल्लाए हैं, बाग में दौड़े आये हैं।

सर सर सर हवा चली है, साथ मे उसके धूल उड़ी है।

पेड़ खूब लहराए है, लगता जैसे अभुआएँ हैं।

तड़ तड़ा तड़ गिरते आम, हुआ अंधेरा हो गई शाम।

छीना-झपटी चालू है, सबसे फुर्तीला लालू है।

इधर खट्ट से उधर खट्ट से, समझ न आये किधर खट्ट से।

लीला के सिर पर गिर गया आम, हो गया उसका काम तमाम।

पकड़ के बैठी सिर को अपने, आम वाम सब हो गए सपने।

बड़े जोर की आंधी है, बच्चों की तो चांदी है।

जरा संभल के बीनो आम, टूटी डाल तो हो गया काम।

झगड़ा टंटा कभी करना, मिल जुल कर सबसे तुम रहना।

कुछ आम, कुछ बेल लिए है, जामुन, कटहल, ढ़ेल लिए हैं।

सबका थैला भारी है, खुश अब हर नर-नारी है।

बच्चों के न थैला है, पन्नी, बंडी ही थैला है।

कपड़ों में लग गया दाग है, बच्चों का ये अहो-भाग्य है।

मैं इतना, तू कितना पाया, लालू तो झोला भर लाया।

अब तो छककर खाएंगे, खूब मौज मनाएंगे।

पके आम का सीजन आया, सब बच्चों का मन हर्षाया।

आंधी आई, तूफा आया, बच्चों ने तब दौड़ लगाया।

झट से पहुँचे बगिया में, लोवर, बंडी, जांघिया में।

सब बच्चे चिल्लाए हैं, लौट के घर को आये हैं।

दिनेश कुमार भूषण

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