आओ जाने नोबेल पुरस्कार के बारे में
नोबेल पुरस्कार आज भी विज्ञान के सबसे बड़े तथा सर्वाधिक सम्मानजनक पुरस्कार हैं। मानव हित के अनुसंधानों को प्रोत्साहित करने हेतु बिने किसी भेदभाव के दिए जाने वाले इन पुरस्कारों की घोषणा आज भी विश्व की प्रमुख घटना होती है। घोषणा होने की तिथि नजदीक आने के साथ ही विश्व घटनाक्रम में रूचि रखने वालो का ध्यान स्काटहोम की तरफ आकर्षित होने लगता है। पहले से प्रसिद्ध , सुर्ख़ियों में आ चुके अनुसंधानों को लेकर अनुमान लगाये जाने लगते है कि किसी व्यक्ति विशेष को एस वर्ष का नोबल पुरस्कार मिलेगा या नहीं? ऐसे में नोबेल पुरस्कार को लेकर सट्टा बाज़ार की गतिविधियां भी प्रभावित होती है।
नोबेल पुरस्कार का इतिहास 100 वर्ष से अधिक पुराना हो चूका है। यह एक सुखद आश्चर्य है कि नोबेल पुरस्कार किसी सरकार की कृपा का परिणाम नहीं है। नोबेल पुरस्कार की सम्पूर्ण व्यवस्था एक वैज्ञानिक द्वारा अपने आविष्कारों से अर्जित राशि के दान से होती है। इस महान वैज्ञानिक का नाम है अल्फ्रेड बर्नार्ड नोबल। अल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर, 1833 को स्काटहोम, स्वीडन में हुआ था। इनके पिता इमेनुअल नोबेल, रसायन इंजीनीयर थे। किसी कारण उनका व्यापर नही चल सका तो इमेनुअल नोबेल को अपना परिवार छोड़ कर धन कमाने रूस जाना पड़ा। माँ एणिड्रएटे नोबल ने किराने की दुकान चला कर बच्चों का लालन-पालन किया। रूस में पिता का व्यवसाय जम जाने पर अल्फ्रेड का परिवार रूस चला गया। अल्फ्रेड का मन साहित्य की ओर आकर्षित होने होने लगा था मगर पिता उन्हें रसायन इंजीनियर बनाना चाह्ते थे। मेधावी अल्फ्रेड अध्यन कर रसायन इंजीनियर बन गए और सेना के लिए हथियार बनाने लगे।
अल्फ्रेड नोबेल के नाम 350 पेटेन्ट थे। मगर उनकी सफलता की सम्पूर्ण कहानी डायनामाइट के आस पास ही घुमती है। पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण ही विस्फोटक पदार्थ अल्फ्रेड को भी बहुत प्रिये थे। इनके एक साथी ने अत्यंत ज्वलनशील पदार्थ नाइट्रो-गिलास्रिन बनाने की विधि विकसित की थी। अल्फ्रेड नोबेल नाइट्रो-गिलास्रिन की विस्फोटक क्षमता के दीवाने हो गए । नाइट्रो-गिलास्रिन के साथ परेशानी यह थी कि उसकी तीव्रता को नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नाइट्रो-गिलास्रिन नामक पागल शेर को पालतू बनाने में लगा दी। अल्फ्रेड के इस अनुसन्धान में सहयोग करते उसका एक भाई लुडविक तथा कई सहायक मारे गए। प्रयोगों के विनाशकता से घबरा कर तत्कालीन स्वीडन सरकार ने स्कॉटहोम की सीमा में अल्फ्रेड के प्रयोगों पर पाबंदी लगा दी। यदि पाबंदी से विज्ञान के प्रयोग रुकते तो विज्ञान कभी आगे बढ़ नहीं पता। अल्फ्रेड ने वीराने में जाकर अपने प्रयोग जारी रखे। प्रयोगों से अल्फ्रेड ने जाना कि नाइट्रो-गिलास्रिन में एक प्रकार की मिटटी मिलाकर उसकी तीव्रता को नियंत्रित किया जा सकता है। नाइट्रो-गिलास्रिन और मिटटी से बनी छड़े ही बाद में डायनामाइट के नाम से लोकप्रिय हुई। डायनामाइट ने अल्फ्रेड को माला-मॉल कर दिया।
मौत के सौदागर की मृत्यु
अल्फ्रेड नोबेल द्वारा मृत्यु से पूर्व लिखे एक इच्छा पत्र की अनुपालना में ही नोबल पुरस्कारों की सम्पूर्ण व्यवस्था है। अल्फ्रेड नोबल ने अपनी चल-अचल -अचल सम्पति में से कुछ भाग अपने परिवार के सदस्यों , सहयोगियों व नौकरों को बॉटने के बाद लगभग 1860 लाख अमेरिकी डालर की सम्पति नोबल पुरस्कारों की व्यावस्था हेतु दी थी। इस सम्पति की देख-भाल नोबेल फाउन्डेशन करती है। नोबेल फाउण्डेशन चल-अचल सम्पति से अर्जित ब्याज से नोबेल पुरस्कारों के चयन व वितरण आदि से जुडी सभी व्यवस्थायें की जाती है।
नोबल पुरस्कारों की व्यवस्था करना अल्फ्रेड नोबल की पहली पसंद नहीं थी। अनायास ही अपने जीवन के विषय में जनभावना जान लेने के बाद अल्फ्रेड नोबल के विचारों में परिवर्तन आया था। परिणाम प्रति वर्ष नोबल पुरस्कार वितरण समारोह के रूप में सामने है। घटना अल्फ्रेड नोबल की मृत्यु से लगभग 8 वर्ष पूर्व की है। अल्फ्रेड नोबेल को उसकी मृत्यु पर लिखा समाचार जीते जी पढ़ने को मिल गया था। फ़्रांस के एक अख़बार ने गलती से अल्फ्रेड के भाई की मृत्यु को अल्फ्रेड नोबल की मृत्यु समझ लिया। इस घटना के समाचार का शीर्षक दिया था ‘मौत के सौदागर की मृत्यु’ लेख में अल्फ्रेड नोबेल को अनेक लोगों की मौत का जिम्मेदार मानते हुए उसकी निंदा की गयी थी। पत्र ने लिखा था, ‘डॉ॰ अल्फ्रेड नोबेल जिन्होंने लोगों को बड़ी संख्या में मारने हेतु अब तक की सबसे तेज विधि खोजी तथा उससे धनवान बने, कल मर गए।’ उस समाचार ने अल्फ्रेड की आँखे खोल दी। जनता में अपने प्रति अच्छी भावना पैदा करने हेतु अल्फ्रेड ने अपनी वसीयत बदल दी। अल्फ्रेड नोबल अविवाहित थे। देखा जाये तो उनकी सम्पति का इससे अच्छा उपयोग हो भी नहीं सकता था। उनके द्वारा दिए गए दान ने जन-जन के मन में उनके प्रति उत्पन्न स्थिति बदल दी। अब अल्फ्रेड नोबल को हर वर्ष पूरे विश्व में श्रद्धा के साथ याद किया जाता है।
सम्मान एवं पुरस्कार
अल्फ्रेड नोबेल अपनी वसीयत में विज्ञान में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा औषध या शारीर-क्रिया विज्ञान में उच्च स्तरीय कार्य करने के वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को पुरस्कृत करने की व्यवस्था दी। इसके साथ ही दुनिया में युद्ध की स्थिति को रोकने का कार्य करने वाले को शांति तथा आदर्श दिशा में साहित्य रचने वाले को साहित्य का पुरस्कार देने को कहा। इस तरह कुल 5 नोबेल पुरस्कार प्रति वर्ष दिए जाते है। 1969 से दिया जाने वाला अर्थशास्त्र का पुरस्कार स्वीडन के राष्ट्रीय बैंक द्वारा अल्फ्रेड नोबल की याद में दिया जाता है। इसके लिए आवश्यक धनराशि बैंक ने अपनी ३००वीं जयंती पर उपलब्ध कराई थी।